उत्तर प्रदेश के एक पीरगढ़ गांव में अब्दुल व उसके कुछ दोस्त रहते थे। एक दिन ऐसे ही उन सभी के बीच भूत की बात छिड़ गई। इस दौरान अब्दुल ने बिना डरे कह दिया कि भूत जैसा कुछ नहीं होता। तभी सभी दोस्तों ने उससे कहा कि ऐसा है तो क्या तुम इस बात को साबित कर सकते हो कि तुम्हें भूत से डर नहीं लगता। उसने कह दिया, “हां, बिल्कुल।”
गांव में इस दौरान ऐसी बातें चल रही थीं कि पास के ही श्मशान घाट में लोगों को भूत नजर आता है। तभी एक दोस्त ने कहा कि ठीक है, तो तुम रात को श्मशान घाट जाओ और वहां जाकर कील गाड़कर आ जाना। फिर सुबह सब मिलकर उस कील को देखकर आएंगे। इतना तय होने के बाद अब्दुल श्मशान घाट के लिए निकल गया। रात काफी काली थी, क्योंकि वो दिन आमावस्या का था। रास्ते में चलते हुए अब्दुल के दिमाग में भूत की बातें घूमने लगी। उसे डर भी लग रहा था, लेकिन दोस्तों के सामने हंसी होगी ऐसा सोचकर वो आगे बढ़ता रहा और श्मशान घाट पहुंच गया।
वहां पहुंचते ही अब्दुल ने कील को गाड़ने के लिए जेब से हथौड़ी निकाली और कील को जमीन में धीरे-धीरे गाड़ने लगा। शोर ज्यादा न करने के चक्कर में अब्दुल काफी आराम से कील गाड़ रहा था। कुछ देर बाद उसे लगा कि कोई उसका कुर्ता खींच रहा है। उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ गया और वो बेहोश होकर नीचे गिर पड़ा।
तभी अब्दुल का पीछा करते हुए श्मशान पहुंचे उसके दोस्तों ने उसे उठाया और गांव लेकर आ गए। काफी देर तक जब अब्दुल को होश नहीं आया, तो उसपर पानी के छींटे मारे। उतने में ही अब्दुल को होश आ गया और उसने बताया कि वो कील श्मशान में गाड़ चुका था, लेकिन तभी कोई उसका कुर्ता खींचने लगा, जिससे वो डर गया।
दोस्तों ने अब्दुल को बताया कि कोई उसका कुर्ता नहीं खींच रहा था। अब्दुल ने पूछा, “तो क्या हुआ था?”
तब उसके दोस्तों ने बताया कि जिस कील को जमीन में वो गाड़ रहा था उसी के नीचे कुर्ता भी दब गया था। इसी वजह से उसे लगा कि कोई उसका कुर्ता खींच रहा है। अपने डर की वजह से शर्मिंदा होते हुए अब्दुल ने अपने दोस्तों से माफी मांगी, लेकिन उसके सारे दोस्तों ने मिलकर उसकी हिम्मत की खूब तारीफ की।
कहानी से सीख :
आप जितना डरेंगे, आपको डर उतना डराएगा।