सत्यनारायण की व्रत कथा – पंचम अध्याय | Satyanarayan Vrat Katha (Chapter Five)

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सत्यनारायण कथा के पांचवें और अंतिम अध्याय में सर्व ज्ञाता सूत जी ऋषि और मुनि गणों को एक और कहानी सुनाते हैं। यह कहानी तुंगध्वज नामक एक राजा की थी, जो प्रजापालन में व्यस्त रहता था।

कुछ समय बाद राजा तुंगध्वज अपने नगर के पास के जंगल में शिकार के लिए निकले। शिकार के बाद राजा एक पेड़ के पास विश्राम करने के लिए रुके जहां उनकी नजर कुछ लोगों पर पड़ी, जो पूरे विधि-विधान के साथ भक्ति में लीन होकर श्री सत्यनारायण भगवान की आराधना कर रहे थे।

हमेशा की तरह अपने अभिमान में चूर राजा तुंगध्वज उस पूजा में शामिल नहीं हुआ और न ही भगवान को नमन करना जरूरी समझा। वहां मौजूद लोगों ने राजा को रोककर भगवान का प्रसाद भी दिया, लेकिन तुंगध्वज ने प्रसाद का अपमान करते हुए उसे लेने से मना कर दिया।

कुछ समय बाद जब राजा तुंगध्वज अपनी नगरी पहुंचा, तो देखा कि उनके प्रदेश में सब कुछ बर्बाद हो चुका था। पूरा नगर तहस-नहस देख राजा तुरंत समझ गया कि यह सब सत्यनारायण भगवान के प्रसाद का अपमान करने का फल है। वह तुरंत उसी जंगल की ओर गया और बिना किसी देरी के उस पूजा में शामिल होकर भगवान का प्रसाद भी खाया।

इसके बाद जब राजा तुंगध्वज दोबारा अपने नगर की ओर चल पड़े। वहां पहुंचकर उसने देखा कि श्री सत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा व्यवस्थित हो चुका था। इसके बाद राजा तुंगध्वज ने लंबे समय तक सुख और समृद्धि के साथ अपना जीवन व्यतीत किया और फिर मृत्यु के बाद उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

इस कहानी के बाद सूत जी ऋषियों को कहते हैं, “हे मुनिगण! इस संसार में जो भी मनुष्य श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत को करेगा उसकी सभी मनोकामना पूरी होगी। इस पूजा को करने से गरीब को धन की प्राप्ति, निसंतान को संतान का सुख प्राप्त होता है। वहीं, मनुष्य अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद जीवन के आखिरी वक्त में बैकुंठ धाम चला जाता है।”

आगे सूत जी कहते हैं, “मैं अब आप सभी को इस व्रत को करने वाले लोगों के दूसरे जन्म के बारे में भी बताता हूं। दूसरे अध्याय के वृद्ध ब्राह्मण ने अगले जन्म में सुदामा के रूप में जन्म लिया और मोक्ष की प्राप्ति की। वहीं, दूसरे अध्याय के लकड़हारे ने निषाद के रूप में जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की।”

इसके अलावा, “तीसरे अध्याय के उल्कामुख राजा ने दशरथ के रूप में बैकुंठ की ओर प्रस्थान किया। चौथे अध्याय के साधु नामक वैश्य ने मोरध्वज के रूप में अपने पुत्र की तरफ से मोक्ष की प्राप्ति की। वहीं, पांचवें यानी अंतिम अध्याय के तुंगध्वज राजा ने भगवान की भक्ति में लीन होकर मोक्ष की प्राप्ति की।”

इस प्रकार श्री सत्यनारायण कथा का पांचवा अध्याय संपन्न हुआ।

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