नृपेंद्र बाल्मीकि एक युवा लेखक और पत्रकार हैं, जिन्होंने उत्तराखंड से पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री प्राप्त की है। नृपेंद्र विभिन्न विषयों पर लिखना पसंद करते हैं, खासकर स्वास्… more
शेखचिल्ली बेहद ही मूर्ख था और हमेशा मूर्खता भरी बातें करता था। उसकी मां अपने बेटे की मूर्खता भरी बातों से बहुत परेशान रहती थी। एक बार शेखचिल्ली ने अपनी मां से पूछा कि लोग मरते कैसे हैं? मां ने सोचा कि इस मूर्ख को कैसे समझाऊं, तो मां ने कह दिया कि लोग जब मरते हैं, तो बस उनकी आंखें बंद हो जाती हैं। मां की बात सुनकर शेखचिल्ली ने सोचा कि एक बार मर कर देखता हूं।
मरने की बात सोचकर शेखचिल्ली ने गांव के बाहर जाकर एक गड्ढा खोदा और उसमें आंखें बंद करके लेट गया। रात हुई तो उस राह से दो चोर गुजरे। एक चोर ने दूसरे चोर से कहा कि अगर हमारे साथ एक और साथी होता, तो कितना अच्छा होता। हममें से एक घर के आगे रखवाली करता, दूसरा घर के पीछे नजर रखता और तीसरा आराम से जाकर घर के अंदर चोरी करता।
शेखचिल्ली उन चोरों की बातें सुन रहा था, वो गड्ढे में से लेटे हुए अचानक बोल पड़ा, ”भाइयों मैं मर चुका हूं, लेकिन अगर जिंदा होता, तो तुम्हारी मदद जरूर करता।” शेखचिल्ली की बात सुनकर वो दोनों चोर समझ गए कि ये निहायत ही मूर्ख आदमी है।
एक चोर ने शेखचिल्ली से कहा, ”भाई मरने की इतनी भी क्या जल्दी है, थोड़ी देर के लिए इस गड्ढे से बाहर आकर हमारी मदद कर दो, थोड़ी देर बात फिर मर जाना।” गड्ढे में पड़े-पड़े शेखचिल्ली को भूख और ठंड दोनों लग रही थी, उसने सोचा चलो चोरों की मदद ही कर देता हूं। दोनों चोरों और शेखचिल्ली ने मिलकर तय किया कि उनमें से एक चोर घर के आगे खड़ा रहकर नजर रखेगा और दूसरा चोर घर के पीछे तैनात रहेगा, जबकि घर के अंदर चोरी करने के लिए शेखचिल्ली जाएगा।
शेखचिल्ली को जोरों की भूख भी लगी थी, इसलिए घर के अंदर जाते ही वह चोरी करने के बजाय खाने-पीने की चीजें ढूंढने लगा। उसे रसोई में चावल, चीनी और दूध मिल गया, तो शेखचिल्ली ने सोचा कि क्यों न खीर बनाई जाए! ये सोचकर शेखचिल्ली खीर बनाने लगा। उसी रसोई में एक बुढ़िया ठंड के मारे सिकुड़ कर सोई हुई थी। शेखचिल्ली ने खीर बनाने के लिए जैसी ही चूल्हा जलाया, उसकी आंच बुढ़िया को लगने लगी। चूल्हे की आग की गर्मी महसूस होने पर बुढ़िया ने खुलकर सोने के लिए अपने हाथ फैला दिए।
शेखचिल्ली को लगा कि बुढ़िया हाथ फैलाकर उससे खीर मांग रही है, उसने कहा, ”अरी बुढ़िया मैं इतनी खीर बना रहा हूं, तो सब अकेले ही थोड़े खा जाऊंगा, धीरज रख, थोड़ी तुझे भी खिलाऊंगा।” जैसे-जैसे चूल्हे के आंच की गर्मी बुढ़िया को लगती रही वह अपने हाथ और ज्यादा फैला कर सोने लगी। शेखचिल्ली को लगा कि बुढ़िया खीर मांगने के लिए ही हाथ फैला रही है, इससे झल्लाकर उसने एकदम गर्म खीर बुढ़िया के हाथ पर रख दी, इससे बुढ़िया का हाथ जल गया और वह चीखते हुए उठ गई और शेखचिल्ली पकड़ा गया। इस पर शेखचिल्ली ने कहा, ”अरे मुझे पकड़ने से क्या लाभ, असली चोर तो बाहर हैं, मैं तो खीर इसलिए बना रहा था, क्योंकि मुझे जोरों की भूख लगी थी।” इस तरह शेखचिल्ली न सिर्फ खुद पकड़ा गया, बल्कि दोनों चोरों को भी पकड़वा दिया।
कहानी से सीख
बुरे लोगों को संगति में रहने से हमेशा नुकसान ही होता है, जैसे चोरों की बातों में आकर शेखचिल्ली को भी चोर समझकर लोगों ने उसे पकड़ लिया। वहीं, मूर्खों के साथ रहने वाले को हमेशा नुकसान होता है, जैसे शेखचिल्ली को अपने साथ ले जाने पर चोरों की सारी योजना धरी की धरी रह गई।