श्री कृष्ण और सुखिया मालिन की कहानी | Shri Krishna Aur Fal Bechne Wali

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ब्रजधाम में एक सुखिया नाम की मालिन आती थी। वह फल, फूल और सब्जी बेचकर अपना गुजारा किया करती थी। ब्रज में सुखिया जब गोपियों से मिलती, तो वो उसे नन्दलाला के बारे में बताती थीं। बाल कृष्ण की लीला सुनने में सुखिया को बहुत आनंद आता था। उसका मन भी बाल कृष्ण के दर्शन को तरसता था। सुखिया श्री कृष्ण को देखने के लिए घंटों तक नन्द बाबा के महल के सामने खड़ी रहती थी, लेकिन उसे श्री कृष्ण के कभी दर्शन नहीं होते।

भगवान कृष्ण तो अंतर्यामी हैं, उन्हें तो सब पता चल जाता है। जब उन्हें पता चला कि सुखिया उनकी परम भक्त है, तो उन्होंने सुखिया को दर्शन देने का निर्णय लिया। अगले दिन सुखिया ने नन्द महल के सामने आवाज दी, “फल ले लो फल”। सुखिया की आवाज सुनकर श्री कृष्ण दौड़े चले आए। नन्दलाल को अपने सामने देखकर सुखिया की खुशी का ठिकाना न रहा। सुखिया ने नन्हे कृष्ण को बहुत से फल दे दिए।

फल की कीमत चुकाने के लिए श्री कृष्ण बार-बार महल के अंदर जाते और मुट्ठी में अनाज लाने की कोशिश करते, लेकिन सारा अनाज रास्ते में ही बिखर जाता था। सुखिया को भगवान कृष्ण दो चार दाने ही दे पाए। सुखिया के मन में इस बात का कोई मलाल न था। वह तो बहुत खुश थी कि आज उसने अपने हाथों से भगवान को फल दिए और उन्होंने वो फल खाए।

सुखिया मुस्कुराती हुई अपने घर पहुंची। उसकी फल की टोकरी खाली थी, क्योंकि वो सारे फल श्री कृष्ण को दे आई थी। घर जाकर उसने टोकरी अपने सिर से उतारी तो पाया कि उसकी टोकरी हीरे जवाहरात से भरी हुई है। सुखिया समझ गई कि यह भगवान की लीला है। उसने मन ही मन बाल गोपाल को धन्यवाद दिया। इस तरह श्री कृष्ण ने अपनी परम भक्त सुखिया का उद्धार किया।

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