सिंहासन बत्तीसी की चौदहवीं कहानी – सुनयना पुतली की कथा

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नृपेंद्र बाल्मीकि एक युवा लेखक और पत्रकार हैं, जिन्होंने उत्तराखंड से पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री प्राप्त की है। नृपेंद्र विभिन्न विषयों पर लिखना पसंद करते हैं, खासकर स्वास्… more

 

तेरहवीं पुतली कीर्तिमती की कहानी को सुनकर राजा भोज कुछ देर सोचने लगे और फिर वापस से सिंहासन पर बैठने के लिए आतुर हो गए। तभी उन्हें चौदहवीं पुतली जिसका नाम सुनयना था, उसने राेक लिया। उसने कहा कि राजा क्या आप में भी वो गुण है, जो आपको इस सिंहासन के योग्य बनाता है? जब राजा ने पूछा कि वो कौन-सा गुण है, जो महाराज विक्रमादित्य में था और मुझमें नहीं है। तब चौदहवीं पुतली ने उसे महाराज विक्रमादित्य की कहानी सुनाई।

महाराज विक्रमादित्य एक सर्व गुण सम्पन्न राजा थे। उनके राज्य में कोई भी दुखी नहीं था और वे छोटे-छोटे नागरिक की समस्या का समाधान भी करते थे। एक दिन उनके दरबार में कुछ किसान आए और प्रार्थना करने लगे कि महाराज हमारे राज्य में जंगल से निकल कर एक शेर आ गया है। वो राेजाना हमारे पशुओं को मारकर खा जाता है। कृप्या आप हमें इस मुसीबत से बचाइए। तब राजा ने उनसे कहा कि चिंता न करें हम कल ही उस शेर को इस राज्य से दूर किसी जंगल की ओर भगा देंगे।

चूंकि, महाराज विक्रमादित्य बहुत पराक्रमी थे, लेकिन वे किसी भी निहत्थे प्राणी को नहीं मारते थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि वे कल उस शेर को किसी दूर जंगल में छोड़ आएंगे। अगले ही दिन वो कुछ सैनिकों के साथ उस शेर की तलाश में निकल पड़े। वह किसी खेत के पास वाली झाड़ियों में छुपा हुआ था। राजा ने देखते ही उसके पीछे अपना घोड़ा दौड़ा दिया। शेर ने जैसे ही घोड़े की टापों को सुना वह जंगल की ओर भागने लगा।

राजा विक्रमादित्य भी तेजी से उसका पीछा करने लगे और शेर का पीछा करते-करते वह अपने सभी सैनिकों को बहुत पीछे छोड़ देते हैं। वहीं, घना जंगल होने के कारण राजा रास्ता भी भटक जाते हैं। फिर भी वह शेर को ढूंढने का पूरा प्रयास करते हैं और एक जगह रूक कर अनुमान लगाने लगते हैं कि शेर किस ओर गया होगा।

तभी अचानक शेर ने झाड़ियों के पीछे से छलांग लगाई और राजा के घोड़े को घायल कर दिया। राजा ने शेर के इस वार को अपनी तलवार से रोक लिया और शेर को घायल कर दिया। शेर घायल होकर जंगल में कहीं दूर चला गया।

अब जबकि विक्रमादित्य का घोड़ा घायल हो गया था और वह रास्ता भी भटक गए थे, इसलिए वो चलते-चलते एक नदी के किनारे पर पहुंचे, जहां पर पानी पीते-पीते घोड़े ने दम तोड़ दिया। राजा को यह देखकर बहुत दुख हुआ। बहुत थका होने के कारण राजा वहीं एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगे। तभी नदी में उन्हें एक शव बहता हुआ दिखाई दिया, जिसे दोनों ओर से कोई पकड़े हुए था। राजा ने गौर से देखा तो उसे पता चला कि शव को एक ओर से बेताल और दूसरी ओर से कापालिक ने पकड़ा हुआ है और दोनों शव पर अपना अधिकार जमा रहे हैं।

दोनों लड़ते हुए शव को किनारे पर ले आते हैं और राजा को देखकर उससे ही न्याय करने को बोलने लगते हैं और साथ ही शर्त रखते है कि यदि सही न्याय नहीं किया, तो वो राजा का वध कर देंगे। कापालिक ने कहा कि मैं इस शव के द्वारा अपनी साधना करना चाहता हूं और बेताल ने कहा कि मैं इससे अपनी भूख मिटाऊंगा। दोनों की बात सुनकर राजा ने भी कहा कि मैं जो कहूंगा दोनों उस बात को मानेंगे और न्याय के लिए आपको शुल्क देना होगा।

दोनों ने राजा की बात मान ली और बेताल ने राजा को एक मोहिनी काष्ठ का टुकड़ा दिया, जिसका चंदन घिसकर लगाकर राजा गायब हो सकते थे। कापालिक ने एक बटुआ दिया, जिससे कुछ भी मांगने पर वह दे सकता था। तब राजा ने बेताल से कहा कि तुम मेरे घोड़े से अपनी भूख मिटा सकते हो और कापालिक को उसने शव दे दिया। दोनों ने राजा के न्याय की प्रसंशा की और वहां से चले गए।

राजा को भूख लगी, तो उसने बटुए से भोजन मांग लिया और जंगली जानवरों से बचने के लिए अदृश्य हो गया। अगली सुबह वह बेतालों का स्मरण कर राज्य की सीमा पर पहुंच गए। रास्ते में राजा को एक भिखारी मिला, तो उन्होंने उसे कापालिक वाला बटुआ दे दिया, ताकि जिससे उसे कभी भोजन की कमी न रहे।

कहानी से सीख:

हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि मुसीबत आने पर भी हमको कभी नहीं डरना चाहिए और अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।

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